दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (DSCDRC) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बेसिक सेल प्राइज पर बेचे गए फ्लैट का देरी से पजेशन देने और बिल्डर द्वारा खरीदार से की गई अतिरिक्त मांगों को अनुचित, अवैध और मनमाना करार दिया है। आयोग ने दंपती को बिल्डर-बायर एग्रीमेंट के आधार पर संबंधित बिल्डर से उनके फ्लैट का पजेशन दिलाया। साथ ही मानसिक परेशानी के लिए 2 लाख रुपये का मुआवजा और मुकदमेबाजी के खर्च के रूप में 50 हजार रुपये अलग से दिलाए।
मामला क्या था?
यह मामला नलिन और अनिता शर्मा नामक एक दंपती का है, जिन्होंने 2007 में धारूहेड़ा, हरियाणा में अरावली हाइट्स नामक एक प्रोजेक्ट में फ्लैट बुक कराया था। द्वारकाधीश प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड (बिल्डर) और दंपती के बीच 18 फरवरी 2008 को एक समझौता हुआ था। समझौते के अनुसार, बिल्डर को तीन साल के भीतर प्रोजेक्ट को पूरा करना था।
हालांकि, बिल्डर निर्धारित अवधि में काम पूरा करने में असफल रहा। इसके बाद उसने 28 फरवरी 2013 को आंशिक ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट के आधार पर अनुचित मांगों के साथ दंपती को पजेशन के लिए ऑफर लेटर भेजा। इन मांगों में दंपती की ओर से भुगतान में कथित तौर पर देरी से भुगतान के लिए ब्याज भी शामिल था, जिसे आयोग ने गलत पाया।
आयोग का फैसला
दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने अपने फैसले में कहा कि रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि दंपती ने कंस्ट्रक्शन लिंक्ड प्लान (सीएलपी) चुना था, जिसमें उन्हें कुल कीमत का 95% भुगतान 2011 तक करना था। दंपती ने यह भुगतान कर दिया था। इसके बावजूद, बिल्डर अतिरिक्त मांगों के साथ उन्हें डिमांड लेटर भेजता रहा। बिल्डर ने इन अतिरिक्त मांगों के लिए कोई स्पष्ट कारण भी नहीं बताया।
आयोग ने यह भी पाया कि बायर्स एग्रीमेंट में बिजली और पानी के कनेक्शन के चार्ज का कहीं कोई जिक्र नहीं था। ऐसे में यह माना जा सकता है कि ये चार्ज बेसिक कीमत में शामिल थे। इसलिए, दंपती इन चार्जों का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं थे।
आयोग ने कहा कि बिल्डर का शिकायतकर्ता से सर्विस टैक्स, ब्याज, पीनल इंट्रेस्ट, IFMS, मेंटेनेंस चार्ज/होल्डिंग चार्ज जैसी मांगें करना अनुचित और अवैध है। क्योंकि बिल्डर की ओर से निर्माण और फ्लैट का पजेशन देने में देरी हुई थी।
दंपती पर केवल क्लब मेंबरशिप, कार पार्किंग चार्ज और इंश्योरेंस कॉस्ट का भुगतान करना बाकी था। इनकी पेमेंट करते ही बिल्डर को एक महीने के भीतर उन्हें फ्लैट का पजेशन देना था। आयोग ने संबंधित प्रोजेक्ट पर निर्माण कार्य में देरी के लिए बिल्डर की खिंचाई भी की।
इस फैसले का महत्व
यह फैसला उन सभी खरीदारों के लिए महत्वपूर्ण है जो बेसिक सेल प्राइज पर फ्लैट खरीदते हैं। यह फैसला स्पष्ट करता है कि बिल्डर खरीदारों से अनुचित और अवैध मांगें नहीं कर सकते। यदि कोई बिल्डर ऐसा करता है, तो खरीदार उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
निष्कर्ष
दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का यह फैसला उन खरीदारों के लिए एक बड़ी राहत है, जो अक्सर बिल्डरों द्वारा की जाने वाली मनमानी मांगों से परेशान रहते हैं। यह फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि बिल्डर-खरीदार समझौते में निर्धारित बेसिक सेल प्राइज के अलावा किसी भी तरह की अतिरिक्त और अनुचित मांग करना अवैध है। साथ ही, यदि बिल्डर निर्धारित समय सीमा में फ्लैट का पजेशन देने में विफल रहता है, तो उसे खरीदार को मानसिक परेशानी के लिए मुआवजा भी देना होगा।
यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि खरीदारों को समझौते में उल्लिखित राशि से अधिक का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। यदि बिल्डर बिजली-पानी कनेक्शन या अन्य सुविधाओं के लिए अलग से शुल्क लेना चाहता है, तो उसे इस बात का स्पष्ट उल्लेख खरीदार-बिल्डर समझौते में करना चाहिए।
इस फैसले के मद्देनजर यह सलाह दी जाती है कि फ्लैट खरीदते समय खरीदार बिल्डर-खरीदार समझौते को ध्यानपूर्वक पढ़ें और समझ लें। यदि आपको लगता है कि बिल्डर आपसे अनुचित मांग कर रहा है, तो उपभोक्ता आयोग से संपर्क करने में संकोच न करें।